आज ६ अगस्त है | जिन लोगो को यह स्मरण न हो उनको मैं यह स्मरण करना चाहता हूँ की आज ही के दिन ६६ वर्ष पूर्व मानवता को कलंकित करने वाली एक बर्बरता पूर्ण घटना ने समूचे विश्व को स्तब्ध करके रख दिया था | मैं परमाणु विस्फोट की बात कर रहा हूँ जो की तब संयुक्त अम्रीका ने जापान के ऊपर किया था | आज उसी दुर्भागयापूर्ण घटना की ६६ वि वर्षगाँठ है | प्रश्न आज यह नहीं हैं की वह घटना एक युद्ध के चरमसीमा तक पहुँचने का आक्रोश था या फिर एक राजनैतिक कदम; प्रश्न आज यह हैं की हमने अंततः इस बर्बरतापूर्ण घटना से क्या सीख ली और आज भी क्यों हम शांति के पथ से खुदको पृथक करके रखते हैं | इतिहास के पंडितो की मानी जाय तो वह घटना एक प्रतिशोध था अम्रीका का जापान के लिए | "पर्ल हार्बर " पर बमबारी होने के बाद अमेरिका को एक ठोस उत्तर देना था जापान को ताके अगले बहुत वर्षो तक जापान यह स्वप्न में भी कल्पना न कर सके की वो अमेरिका जैसे महाशक्ती पर प्रहार करें | परन्तु क्या एक युद्ध का परिणाम यह होना चाहिए ? और सबसे बड़ा प्रश्न यह हैं की अंततः युद्ध होना ही क्यों चाहिए ? पशुओ के समाज में भी ऐसे भयानक घटनाओं का संस्करण नहीं होता जो की मनुष्यों के इतिहास में हुआ है | मनुष्यों की प्रजाती ही एक अकेली प्रजाती है जो की अपने अहम् के संतप्ती के लिए अपने ही प्रजाती के प्राण भी हर लेती हैं | ऐसे अहम् की संतप्ती का क्या लाभ ?
आज कभी आतंकवाद तो कभी युद्ध के नाम पर मानवता का हनन होता ही रहता हैं | मनुष्य मनुष्य का शत्रु बना हुआ है और यह सिर्फ एक ऐसे कारण के लिए जो के एक शांतिपूर्ण रूप से हल हो सकता हो |
आज कभी धर्म के नाम पर तो कभी देश के नाम पर तो कभी जाती के नाम पर यह परमाणु बम हमारे भीतर अपना विस्फोट करती रहती हैं | आज के इस समाज में हर एक मानव और उसकी इच्छाएं एक परमाणु बम के सामान हैं जो न केवल स्वयं को पर अपने साथ पुरी मानवता को दुर्गती के पथ पर ले जाने को तत्पर हैं | आज इस समस्या के केवल दो ही समाधान है ; या तो हम सब एक दुसरे को गाजर मूली की तरह काट कर रख दे या फिर विचार करे की अंततः हमे किसकी और कितने की आवश्यकता है और कहीं हमारी यह आकांक्षा किसी के मानवता का हनन तो नहीं कर रही |
प्रथम पथ पर चलना बहुत सरल हैं पर इसका परिणाम कितना भयानक होगा ये हम सब कल्पना कर सकते हैं | हमारा समाज एक संवेदनशील गठन से पृथक होके एक अमानवीय संरचना का रूप लेगी जहाँ पर दुर्बल मनुष्यों के लिए कदाचित एक ही पथ शेष रहे और वह हैं स्वयं को एक शक्तिशाली व्यक्ती को समर्पित करना जो आपका कभी भी कितना भी उपयोग कर सके और आपको उपयोग करने के पश्चात एक तुच्छ वास्तु की तरह नकार दे | हमार समाज आज देखा जाए तो इस पथ पर अग्रसर हैं | द्वितीय पथ पर चलना कठिन हैं और एक समूचे समाज को इसके लिए प्रेरिक करना और भी जटिल | परन्तु इस पथ पर शांति और सम्मिलित उन्नती का बीज है | इस पथ पर चलना कठिन अवश्य हैं परन्तु एक बार इस पथ पर चलने के बाद जब इसके लाभ हमे दीखते हैं तब हमें इस पथ के सठीक होने का प्रतीत होता हैं | सभी प्रत्याशाओं को छोड़ जब हम एक समाज के उद्धार की बात करते हैं और वह उद्धार के लिए सदेव कर्तव्यपरायण होतें हैं तब जाके एक आदर्श समाज का गठन होता हैं |
किसी संत ने कहाँ हैं की "We live in a world of guided missiles but misguided men" हम एक ऐसे जगत में वास कर रहें हैं जहाँ पर मिस्सईल तो निर्देशित हैं पर उन्हें निर्देश देने वाले हाथ असंतुलित व असिक्षित हैं | आज इस दिन में हमे यह स्मरण रहे ही जब मनुष्य का अहम् उसके चरमसीमा पर पहुँचता हैं तब जगत में विनाश को छोड़ और कुछ नहीं हो पाता | विकास की बात तो दूर तब सिर्फ एक समाज व सामाजिक ढाँचे का बलात्कार होता है |
एक भारतीय होने के नाते मैं यह आशा रखता हूँ की हम इस दुसरे पथ पर अग्रसर हो | हम हमारे देश की रक्षा करें पर यह भी स्मरण रखें की देश की प्रगती होती हैं शांति के पथ पर चलने से न की एक योद्धा का विचारधारा रखने से | इसका प्रमाण हमारे पास ही मौजूद हैं |














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